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उ॒शना॒ यत्स॑ह॒स्यै॒३॒॑रया॑तं गृ॒हमि॑न्द्र जूजुवा॒नेभि॒रश्वैः॑। व॒न्वा॒नो अत्र॑ स॒रथं॑ ययाथ॒ कुत्से॑न दे॒वैरव॑नोर्ह॒ शुष्ण॑म् ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uśanā yat sahasyair ayātaṁ gṛham indra jūjuvānebhir aśvaiḥ | vanvāno atra sarathaṁ yayātha kutsena devair avanor ha śuṣṇam ||

पद पाठ

उ॒शना॑। यत्। स॒ह॒स्यैः॑। अया॑तम्। गृ॒हम्। इ॒न्द्र॒। जू॒जु॒वा॒नेभिः॑। अश्वैः॑। व॒न्वा॒नः। अत्र॑। स॒ऽरथ॑म्। य॒या॒थ॒। कुत्से॑न। दे॒वैः। अव॑नोः। ह॒। शुष्ण॑म् ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:29» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:24» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) राजन् आप और (उशना) कामना करता हुआ जन ! तुम दोनों (सहस्यैः) बलों में उत्पन्न हुए पदार्थों के साथ (जूजुवानेभिः) वेगवाले (अश्वैः) घोड़ों वा अग्नि आदिकों से चलाये गये वाहन पर स्थित हो के (यत्) जिस (गृहम्) गृह को (अयातम्) प्राप्त हूजिये और (अत्र) इस जगत् में (ह) निश्चय से (वन्वानः) याचना करते हुए आप (कुत्सेन) वज्र के सदृश दृढ़ कर्म्म से (देवैः) विद्वानों से (शुष्णम्) बल की (अवनोः) रक्षा करिये और हे मनुष्यो ! आप लोग इन दोनों के साथ (सरथम्) रथ के साथ वर्त्तमान जैसे हो, वैसे निश्चय से (ययाथ) प्राप्त होओ ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो राजा आदि मनुष्य उत्तम प्रकार श्रेष्ठ होवें, वे विमान आदि वाहनों को बना सकें और दुष्ट जनों के मारने को समर्थ होवें ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र त्वमुशना च ! युवां सहस्यैः सह जूजुवानेभिरश्वैश्चालिते याने स्थित्वा यद् गृहमयातमत्र ह वन्वानस्त्वं कुत्सेन देवैः शुष्णमवनोः। हे मनुष्या ! यूयमेताभ्यां सह सरथं ह ययाथ ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उशना) कामयमानः (यत्) (सहस्यैः) सहस्सु बलेषु भवैः (अयातम्) प्राप्नुतम् (गृहम्) (इन्द्र) राजन् (जूजुवानेभिः) वेगवद्भिः। अत्र तुजादीनामित्यभ्यासदैर्घ्यम्। (अश्वैः) तुरङ्गैरग्न्यादिभिर्वा (वन्वानः) याचमानः (अत्र) अस्मिन् जगति (सरथम्) रथेन सह वर्त्तमानम् (ययाथ) प्राप्नुत (कुत्सेन) वज्रेणेव दृढेन कर्मणा (देवैः) विद्वद्भिः (अवनोः) रक्ष (ह) किल (शुष्णम्) बलम् ॥९॥
भावार्थभाषाः - ये राजादयो मनुष्याः सुसभ्याः स्युस्ते विमानादीनि निर्मातुं शक्नुयुर्दुष्टान् हन्तुं समर्था भवेयुः ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजा इत्यादी जी माणसे श्रेष्ठ असतात. त्यांनी विमान इत्यादी वाहने निर्माण करून दुष्टांना मारण्यास समर्थ असावे. ॥ ९ ॥